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जहांगीर आर्ट गैलरी में प्रो. डॉ. सुनील कुमार सक्सेना की "अचल सौंदर्यम" नामक एकल चित्रकला प्रदर्शनी

 

प्रसिद्ध चित्रकार प्रो. डॉ. सुनील कुमार सक्सेना 

प्रसिद्ध चित्रकार प्रो. डॉ. सुनील कुमार सक्सेना द्वारा नवनिर्मित चित्रों की एकल कला प्रदर्शनी 9 से 15 सितंबर 2025 तक जहांगीर कला दालन, काला घोड़ा, मुंबई 400001 में आयोजित की गई है । यह प्रतिदिन सुबह 11 बजे से शाम 7 बजे तक सभी के लिए निःशुल्क खुली रहेगी । "अचल सौंदर्यम" "प्रो. सुनील कुमार सक्सेनाः दृश्य के पार, अनुभूति के भीतर"  


डॉ. सुनील कुमार सक्सेना का जन्म वर्ष 1956 में उत्तर प्रदेश, भारत में हुआ। वे भारतीय दृश्य कला के क्षेत्र में एक प्रतिष्ठित चित्रकार, प्रखर कला शिक्षाविद्, कला समीक्षक और संवेदनशील विचारक के रूप में पहचाने जाते हैं। उन्होंने अपने चित्रों में भारतीय सांस्कृतिक मूल्यों, सामाजिक यथार्थ, लोक परंपराओं तथा पर्यावरणीय विषयों को समकालीन अभिव्यक्तियों के माध्यम से चित्रित किया है। उनका कार्य शैलीगत दृष्टि से परंपरा और आधुनिकता के बीच एक रचनात्मक संतुलन प्रस्तुत करता है। प्रकृति अपनी अंतहीन विविधता, चुपचाप चलने वाले लयबद्ध चक्रों, और दृश्य की लगातार बदलती बनावटों के साथ कला का ऐसा विषय बनती है जो न केवल आकर्षक है, बल्कि चुनौतीपूर्ण भी। प्रो. सुनील कुमार सक्सेना एक अनुभवी और संवेदनशील चित्रकार, इसी चुनौती को रचनात्मक अवसर में बदलते हैं। उनके लिए प्रकृति न तो केवल दृष्टिगत रूप से सुंदर दृश्य है, न ही सिर्फ प्रेरणा का स्रोत ! बल्कि वह एक "जीवित संवाद" है, एक रहस्य, जो प्रतीक, रंग और रूप के माध्यम से आत्मा को संबोधित करता है। सक्सेना जी ने चार दशकों से भी अधिक समय से भारतीय चित्रकला के दृश्य-मानचित्र को समृद्ध किया है।


 दस एकल प्रदर्शनियाँ, सात अंतर्राष्ट्रीय शो और सौ से अधिक राष्ट्रीय कला शिविरों व समूह प्रदर्शनियों में भागीदारी, उनके व्यापक कलात्मक अनुभव की गवाही देती हैं। किन्तु आँकड़े उनकी कला की गहराई का पूरा बयान नहीं कर सकते। उनका चित्रकर्म दृश्य के माध्यम से "चेतना की परतों" में उतरने का एक सधा हुआ प्रयास है। उनकी कला कृतियों में पर्वत, नदियाँ, क्षितिज, जल और आकाश जैसे प्राकृतिक तत्व यथार्थ से ऊपर उठकर प्रतीकात्मक बन जाते हैं। पर्वत, स्थिरता और आंतरिक शक्ति का प्रतीक नदियाँ, प्रवाह और जीवन के परिवर्तनशील स्वभाव की गूंज, आकाश, अनंतता और आत्मिक स्वतंत्रता का बिंब और बादल, जीवन की क्षणभंगुरता, रहस्य और भावुक अस्थिरता के परिचायक है। यह दृश्य भाषा एक साधारण दृश्य से परे बहुत कुछ कहती है, यह "विचार, अनुभूति और दर्शन का संगम" है। सक्सेना की पेंटिंग्स में रंगों की परतें मात्र सजावटी नहीं होतीं अपितु वे स्मृति, संवेदना और मौन संवाद की वाहक होती हैं। वे अमूर्त और यथार्थ के बीच एक पुल बनाते हैं जहाँ दृश्य अपनी भौतिक सीमाओं को पार कर 'सांस्कृतिक स्मृति', 'आध्यात्मिक प्रतीकवाद' और 'मानवीय चिंतन' की गहराइयों में प्रवेश करता है। उनकी रचनाओं में एक स्वप्निल वातावरण रचा गया है, जो दर्शक को देखने से अधिक "महसूस करने" के लिए आमंत्रित करता है। प्रो. सक्सेना की यह प्रदर्शनी एक साधारण प्रदर्शन नहीं है, यह एक निमंत्रण है। यह आपको दृश्य की सतह से आगे बढ़कर उसके भीतर छिपे अर्थों, उसकी ऊर्जा और उसकी अनकही कहानियों से मिलने का अवसर देती है। हर चित्र एक खिड़की है, प्रकृति की तरफ खुलती हुई, और साथ ही भीतर की ओर झाँकने का अवसर भी देती हुई है।  



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